Inspirational Hindi Story About a Mother’s Determination
सुधा के पति, सुधांशु का देहांत एक बस दुर्घटना मे हुआ था| तब उसकी शादी के सिर्फ़ दस साल बीते थे| जब तक उसके पति ज़िन्दा थे, उसकी ज़िन्दगी खुशियों के खज़ाने से भरी पड़ी थी| उनके न रहने पर, निराशा के सिवा कुछ नही था सुधा के जीवन मे|
उसका बेटा तब सिर्फ सात साल का था| राहुल अपने पापा को बहुत मिस करता था| सुधा के लिए जीने का मकसद अब सिर्फ उसका बेटा ही था| जब वह दुनिया मे आया था तब ही उसके पिता ने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना देखा था| सुधा को उनकी बातें याद आतीं तो वह आसुओं को रोक नही पाती थी| हिम्मत के साथ उसने अपने बेटे की परवरिश पर अपनी सारी शक्ति लगा दी|
स्कूल में अच्छे नंबर लाने के लिए वह खुद हर शाम राहुल को पढ़ाई में मदद करती थी| गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए उसने ट्यूशन लगा दिया था| अपना समय बिताने के लिए उसने सिलाई क्लास में अपना दाखिला कराया था और वह जल्दी ही सिलाई कढ़ाई में माहिर हो गयी थी|
घर में वह कालोनी की औरतों के लिए ब्लाउज, शलवार-कुर्ता सिलने लगी| उसके अच्छे काम और शीलता के कारण ज़्यादा से ज़्यादा औरतें उसी के पास आना पसंद करती थीं| बटन टाकने, फौल लगाने और तुरपाई के लिए उसने दो बेसहारा औरतों को भी काम पर रख लिया था| रामी और विमला दुनिया में बिलकुल अकेली थीं| उनको खुद सुधा ने सिलाई का काम सिखा दिया था और थोड़े पैसे भी उन्हें देती थी|
दोनो औरतें उसको बहुत मानती थीं और सिलाई के काम में जितना हो सके उसकी मदद करती थीं| धीरे धीरे समय बीतता गया| राहुल अब बड़ा हो गया था| सुधा ने जीतोड़ मेहनत की थी और घर थोड़े पैसों मे चला कर उसने पैसे जमा किये थे| राहुल की डाक्टरी की पढ़ाई में चाहे जितने पैसे लगेंगे वह लगा देगी, यही उसने सोचा था|
थोड़े पैसे पति ने भी बैंक मे छोड़े थे, बाकी वह गहने भी गिरवी रख सकती थी| उसे मालूम था की उसके पडोसी इतने अच्छे थे की परिवार के सदस्य भी इतने अच्छे ना होंगे| ज़रुरत पड़ने पर उनमें से हर कोई सुधा को हर प्रकार से मदद करने को तैयार था|
ईश्वर इच्छा से राहुल का दाखिला एम्. बी. बी. एस. की पढ़ाई में बिना पैसे या सिफारिश के ही कम्पटीशन में बैठने से पहली बार में ही हो गया| सुधा की ख़ुशी का ठिकाना न था| उसको मानो सब कुछ मिल गया| बड़े शहर मे दाखिला हुआ था और उसके बेटे को दस दिन के अन्दर ही जाना था|
सुधा ने मन लगाकर तय्यारी शुरु कर दी| सबसे पहले तो उसने राहुल को ले जाकर उसके लिए पेंट, शर्ट, पयजामा, कुरता, जुराब, रूमाल और तौलिया ढेर सारे खरीद दिए|
उसने सोचा पता नहीं मेरे बेटे को कपड़े धोने का समय कब मिलेगा| जूते चप्पल बक्सा बैग एक नया टिफ़िन का डब्बा भी वह ले आई| एक हफ्ते पहले से ही उसने बेटे का सामान जमाना शुरू कर दिया| पढ़ाई की किताबों के लिए और खर्चे के लिए भी पैसे राहुल के पास रखवा दिए|
अब सिर्फ दो दिन बचे थे| सिलाई का काम दो दिन बंद कर सुधा ने विमला और रामी के साथ मिलकर खाने का सामान बना लिया जो कुछ दिनों तक रखा जा सके| नमक और शक्कर पारे, गुजिया, बेसन की भुजिया और मसाले वाले समोसे उसने बड़े प्यार से बनाए|
जिस दिन राहुल को ट्रेन पकड़नी थी, उस दिन सुबह से ही हो-हल्ला शुरू हो गया| पड़ोस की बनारस वाली चाचीजी ने राहुल के लिए लड्डू बनाये थे| लाकर उन्होंने आवाज़ लगाई, “अरे सुधा, ये ले मैंने राहुल के लिए लड्डू बाँध दिए हैं| उसे दे देना,” कहते हुए उनकी आँखें भर आयी|
थोड़ी देर बाद ही राधा ताई हाँफते-हाँफते दरवाज़े पर आयी और कहा, “राहुल बेटे, देखो मोटी ताई ने तुम्हारे लिए दाल भरी पूरियाँ बनायीं हैं| यह ख़राब नहीं होंगी| दो एक दिन रखकर खाना|”
राहुल ने आकर ताई को गले लगाकर कहा, “अरे ताई आपका आशीर्वाद ही काफी था| आपने मेरे लिए इतनी मेहनत क्यूँ की?” ताई ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और सारी के पल्लू से आँखें पोंछती हुई घर हो चली|
विमला और रामी ने राहुल को खुद के पैसों से खरीद कर एक बहुत सुंदर छोटी सी शंकर भगवान् की मूर्ति दी क्यूंकि वह शम्भुनाथ का बचपन से हो बड़ा भक्त था| राहुल ने पैर छूकर दोनों का आशीर्वाद लिया|
सुधा ने आँसुओं के बीच मुस्करा कर बेटे को विदा किया| भारी मन से उसने बेटे का माथा चूमा और उसके दोस्त पप्पू और श्याम के साथ स्टेशन भेज दिया|
पांच साल बीत गए और राहुल डॉक्टर बन घर लौटा|
इस बार, जो आँसू सुधा ने बहाए वह ख़ुशी के आँसू थे| उसके पति का सपना जो पूरा हुआ था|
डिस्क्लेमर: यह एक काल्पनिक कहानी है|
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