Heartwarming Inspirational Story About Brother-Sister Bond
गर्मियों की शाम थी| लॉन में मालती मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी| इतने में बहादुर चौकीदार ने आकर कहा, “मेमसाब मैं दो मिनट को चाय लेने किचन मे गया था| लौट कर गेट पर गया तब क्या देखता हूँ की एक बच्चा कपड़े में लिपटा हुआ गेट के पास है| पता नही कौन उसे यहाँ रख कर चला गया|”
“अरे बहादुर, जिसने भी उसे वहाँ रखा हो, तुमने क्यूँ उसे वहाँ अकेला छोड़ दिया? अन्दर ले आओ उसे मेरे पास|” “जी मेमसाब,” कहते हुए बहादुर बाहर को भागा|” मालती ने मैगज़ीन को टेबल पर रख्खा और उतावली होकर बच्चे का इंतज़ार करने लगी| थोड़ी देर में बहादुर वापस आया और मालती ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया|

“अरे कितना प्यारा बच्चा है| बहादुर ज़रा किचन में जाकर भोला से थोड़ा दूध गरम करवाके एक कटोरे में ले आओ, और हाँ एक चम्मच भी लाना|” “जी मेमसाब,” कहता हुआ बहादुर किचन की ओर चल पड़ा| मालती ने कुर्सी पर बैठ बच्चे को गोद में संभाला और उससे बातें करने लगी|
इतने में बहादुर और भोला, दोनो मालती के पास आकर रुक गए| बहादुर ने कटोरा पकड़ा था और भोला के हाथ में चम्मच था| “ये लीजिये मेमसाब|” कटोरे का दूध ख़तम करके मालती ने अपने सारी के आँचल से बच्चे का मुह पोंछा| इतने में रानी ने आकर कहा, “मालकिन आपका फ़ोन है, साहब बात करना चाहते हैं|” “अच्छा तू बच्चे को संभाल| मैं फ़ोन सुनके आती हूँ|
“अरे कितना प्यारा बच्चा है, मुझे दीजिये|” मालती ने बच्चे को रानी को पकड़ाया और फ़ोन सुनने गई| इस बीच बहादुर और भोला ने भी बच्चे को प्यार से बारी-बारी गोद में उठाया| मालती बाहर आई तब तीनो ने पूछा, “मेमसाब, आपने छोटे बाबा के बारे में साहब को बताया?” “अरे नही रे, उनको आने दो फिर बताऊंगी| वो हैरान हो जायेंगे बच्चे को देख कर| ऑफिस से निकल रहे हैं, आधे घंटे में पहुँच जायेंगे| भोला, तुम ज़रा बेसन का हलवा और पकौड़े नाश्ते के लिए बना लो| साहब को बहुत पसंद है| रानी बच्चे को मुझे दे|”
“अभी बनाता हूँ मेमसाब,” कहकर भोला ने किचन का रुख किया| बहादुर गेट पर चला गया और रानी शाम के डस्टिंग में लग गई| मालती बच्चे का चेहरा ऐसे घूर रही थी जैसे उसे फिर नहीं देख पायेगी| किसका बच्चा है, कैसी माँ है जो ऐसे प्यारे जीव को यहाँ रख कर चली गई? मन में उसके तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे|
इतने में गाड़ी की हॉर्न सुनाई दी और सौरभ गाड़ी में से उतर कर लॉन की तरफ आए| बंसी ड्राईवर ने गाड़ी को ठीक से लगा दिया| इतने में बहादुर ने आकर उसे बच्चे के बारे में बताया| नौकरों में बड़ी खलबली मची थी| सौरभ ने मालती की गोद में बच्चे को देख कहा, “अरे यह नन्हा मुन्ना किसका है?” “आप बैठिये, मैं बताती हूँ,” मालती ने मुस्कुरा के कहा|
सारी बातें सुनकर उसके पति ने पुलिस में खबर करने की राए दी| इसपर मालती ने सुझाव दिया की क्यूँ ना हम एक दो दिन देख लें| अगर कोई बच्चे को लेने वापस आता है तब दे देंगे और नही आया तब सोचेंगे की क्या किया जाए|” “पर इसकी देखभाल कौन करेगा?” “रानी संभाल लेगी और फिर मैं भी हूँ,” मालती ने ज़िद करते हुए कहा| “अच्छा ठीक है पर इसके बारे में कोई फैसला करना होगा|”
तभी रानी और भोला चाय और नाश्ता लेकर आए| सौरभ ने भी तब तक कपड़े बदल कर हाथ-मुह धो लिए थे| “रानी बच्चे को संभालो, मैं चाय बनाती हूँ|” “ठीक है बीबीजी, मुझे दीजिये|”
दो दिन के बदले चार दिन बीत गए पर कोई बच्चे की खोज खबर लेने नही आया| चौथे दिन शाम को सौरभ ने ऑफिस से आकर मालती से कहा, “अब तो पुलिस में खबर कर देना चाहिए, क्यूँ है न मालती?” “सुनियेजी एक बात कहना चाहती हूँ आपसे,” मालती ने प्यार भरे अंदाज़ से बात शुरू की, “क्यूँ न हम इस प्यारे से बच्चे को अपना बेटा बनाकर हमेशा के लिए रख ले| मेरा मन अब इसके बिना नही लगेगा|मधुर मुझे जान से भी ज़्यादा पसंद है|”
“अरे तुमने इसका नाम भी रख दिया| अच्छा नाम है पर मालती बाद में कभी इसके माँ-बाप या कोई रिश्तेदार लेने आ जाएँ तब हम क्या करेंगे?” “जब की तब देखी जाएगी| मेरा मन केहता है इसकी माँ यही चाहती थी की उसका बच्चा हमारे पास रहे| अगर बाद में कोई आ ही गया, तब मैं खून के आँसूं बहाकर अपने इस नन्हे फूल को दे डालूंगी|”
“ठीक है फिर जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, पर कभी सोचा है मालती कल को तुम्हारे खुद के बच्चे होंगे तब तुम्हारा प्यार कम नही पड़ जायेगा मधुर के लिए?” “ऐसा कभी नही होगा| अच्छा कल शनिवार है और आपको ऑफिस नहीं जाना है| कल हम मधुर के लिए कपड़े और खिलौने लेने जायेंगे| बड़ा मज़ा आएगा|”
अगले दिन बाज़ार से लौटते वक़्त सौरभ और मालती मधुर को लेकर अपने दोस्त और फैमिली डॉक्टर सुजीत के क्लिनिक गए| वहाँ उसकी सारी जांच करवाई और इंजेक्शन इत्यादि लगवाया| एक महीना गुज़र जाने पर मालती और सौरभ ने कानूनी तौर पर मधुर को गोद ले लिया| मालती का डर की कहीं उसके बेटे मधुर को कोई वापस माँगने ना आ जाए भी जाता रहा|
पार्ट २
एक शाम, चाय के वक़्त, सौरभ ने कहा, “मालती हमने अपने बच्चे का नाम मधुर तो रख दिया है पर इसका असली मज़हब हिंदु है या नही हमे पता नही|” मालती ने कहा, “मैंने इसका नाम मधुर इसलिए रखा है क्यूँकी यह हर मज़हब को मानकर चलेगा और जो भी इसकी ज़िन्दगी में आएगा उसका जीवन इसकी माधुर्य से भर जायेगा|” “वाह, तुमने भी खूब कहा मालती,” सौरभ ने हँसते हुए कहा|
दिन बीतते गए| मधुर अब ढाई वर्ष का हो गया था| मालती ने उसे पास के प्ले स्कूल ‘नन्ही दुनिया’ में डाल दिया था| वहाँ और नन्हे मुन्ने बच्चों के साथ उसका बेटा खुश हो जाता था| घर के सारे नौकर मधुर बाबा पर फ़िदा थे और वह सबकी आँखों का तारा बन गया था|
मधुर जब साढ़े तीन साल का हुआ तब मालती ने एक नन्ही सी गुड़िया को जन्म दिया| धीरे-धीरे मधुर और अलका बड़े हो गए| अलका ने कॉलेज जॉइन किया और मधुर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा| दोनों एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते पर दोनों में बेहद प्यार भी था|
मधुर अपनी बहन का बहुत ख्याल रखता था| उसे पढ़ाई में मदद करता था, घुमाने ले जाता था और गर्मियों में हर शाम आइस क्रीम खिलाने ले जाता था| दोनों के दोस्त मिलकर फिल्म देखने और पिकनिक पर जाया करते थे| महीने में दो बार डिनर पर जाते थे जहाँ एक बार मधुर की ट्रीट होती थी और अगली बार अलका की|
दोनों एक दुसरे को बेशुमार तोहफे दिया करते थे| आज शाम को उनके बंगले पर पार्टी थी| आज मधुर का जनम दिन मनाया जाता था| मालती ने इसी दिन को, जब मधुर उसके घर के दरवाज़े के बाहर मिला था, मधुर का जनम दिन मान लिया था|
सुबह से ही पार्टी की तय्यारी शुरू हो गयी थी| बहादुर पूरे घर की सजावट में रामदीन माली की मदद कर रहा था| हर कमरे में फूलों के सुंदर गुलदस्ते रखे गए थे| मधुर ने फूलों की सजावट देख कर कहा, “रामदीन काका, इतने सारे फूल क्या बगान के हैं?” “नहीं मैंने वर्माजी और शर्माजी के यहाँ से भी गुलदस्ते बना लायें हैं|उन्होंने कहा, “रामदीन मधुर के जनम दिन की पार्टी है तब तो सारे फूल ले जाओ| हम भी शाम को आकर उनकी सुन्दरता का आनंद उठाएंगे|” “अच्छा, यह बात है| खैर जो भी हो काका, तुमने गुलदस्ते बहुत सुंदर सजाये हैं|”
भोला और रानी पकवान बनाने में लगे थे|भोला के दो दोस्त राम और श्याम मदद करने आ गए थे| दोनों ने कबाब और समोसे का जिम्मा लिया था| रानी राजमा बनाने में माहिर थी और भोला सैंडविच, ब्रेड रोल और रसगुल्ले बना रहा था| केक का आर्डर फ्लुरीज़ को दिया हुआ था|
आखिर शाम होने को आई और मेहमान आना शुरू हो गए| सबसे पहले, उनके पड़ोसी शर्माजी और वर्माजी का परिवार आया| वर्मा परिवार की नौकरानी कमला भी रानी की मदद को आई थी| उसने कोल्ड ड्रिंक्स का जिम्मा लिया|
अलका ने गुलाबी रंग की शिफॉन सारी पहनी थी जिसपर सफ़ेद सीपियों और मोतियों से कढ़ाई की हुई थी| यह सारी उसके भाई ने उसे अपने जनम दिन पर दी थी| साथ में गुलाबी सैंडल और कान के टॉप्स जो की मोतियों के थे, अलका को सुंदर बना रहे थे| मधुर ने भी अपनी बहन का दिया हुआ तोहफा पहना था – काली पैंट और नीला टीशर्ट| जूते और नई घड़ी उसे मम्मी पापा ने दी थीं|
अलका की सहेलियाँ जो ख़ास-ख़ास थीं एक साथ झुण्ड बनाकर ड्राइंग रूम में दाखिल हुईं| “अरे शालू, मीनल, प्रेरणा, चंदा, जूही, सीमा आ गई तुम सब|आओ मेरे भैया से मिलो| मधुर भैया देखो ये हैं मेरी सहेलियाँ|” “हेल्लो सभी को और अब मेरे दोस्तों की इंट्रो तो हो जाए| ये है समीर, मनीष, साहिल, श्यामल, तरुण और राकेश| अरे हाँ, इनसे मिलो, ये हैं तनूजा, राकेश की कज़न जो अमेरिका में रहती है और छुट्टियों में यहाँ आई हुई है|”
सौरभ के ऑफिस के कुछ कॉलीग आए थे और मालती की किटी पार्टी के मेम्बेर्स भी आये थे| शगुन, सोनाली, वैदेही, रत्ना, शोभा, भवानी और नुपुर|अभी कॉकटेल्स चल रहे थे जब की मालती की सहेलियों ने शोर मचाया, “अरे अलका तुम्हारा गाना बहुत दिनों से नही सुना है| अब ज़रा बिना नखरे के एक अच्छी सी ग़ज़ल सुनाओ|” मधुर के दोस्तों ने भी ज़िद की और अलका की सहेलियों ने उसे खींच कर बीच में खड़ा कर दिया|
अलका ने मधुर की ओर देख कर कहा, “मैं एक शर्त पर गाऊँगी, भैया को मेरा साथ देना होगा|” “ठीक है अलका, तेरी अगर यही शर्त है तो मुझे मंज़ूर है| पर मेरी भी एक शर्त है, तुम्हारी सहेलियों को भी एक-एक गाना सुनाना पड़ेगा|” “ठीक है भैया, यह सब भी गायेंगी|”
पार्टी अब ख़तम होने को आ रही थी| सबने खूब खाया पिया और एन्जॉय किया| तनूजा तो अलका और उसकी सहेलियों से इतनी प्रभावित थी की आने वाले दिनों के लिए घूमने, मूवीज़ और शौपिंग का प्लान भी सबके साथ बना लिया था| आखिर बंगले में रौशनी धीमी की गई और थके हारे लोग नींद की गोद में चले|
मालती ने सोचा की वह कितनी किस्मत वाली है की मधुर उसे बेटे के रूप में मिला जिसकी शगुन से उसे अलका मिली|
डिस्क्लेमर: यह एक काल्पनिक कहानी है|
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