Short Story in Hindi About Trust and Faith in God
माधवी तेरह वर्ष की एक साधारण लड़की थी| रंग गेहुँआ और नाक नक्श भी ठीक ठाक ही था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अनमोल आकर्षण का अजीब सा फैलाव था| उसकी मीठी आवाज़ और असाधारण बुद्धि लोगों पर असर छोड़ जाती थी|
बचपन में माँ बाप गुज़र गए थे इसलिए वह अपने चाचा चाची के पास रह्ती थी| चाचा तो उसका बेहद ध्यान रखते थे पर चाचीजी का बर्ताव माधवी के साथ अच्छा नहीं था|
चाचा के दोनों बच्चे गाँव की पाठशाला में पढ़ते थे पर माधवी को चाची ने घर के काम में ऐसा लगा रखा था की पाठशाला जाने का कोई सवाल ही नहीं था| सुबह से रात तक वह माधवी के पीछे पड़ी रहती और दांत फटकार कर सारा घरेलु काम करवाती|
माधवी दुखी तो रहती पर निराशावाद में उसे विश्वास नहीं था| उसकी माँ ने उसे समझाया था की किसी भी परिस्थिति में मनुष्य को हार नहीं माननी चाहिए और अपना काम मन लगा कर करना चाहिए| माँ की शिक्षा याद कर माधवी घर का सारा काम ऐसे करती थी की कोई अतिथि अचानक आये तो उसे घर व्यवस्थित मिलता था|
चाहे कोई किसी समय क्यूँ ना आये, माधवी के चेहरे की मुस्कान कभी धीमी नहीं पड़ती थी| मन की पीड़ा को किसी पर ज़ाहिर नहीं करती थी| सबसे हंसती बोलती रहती और अतिथियों का स्वागत चाय, शरबत, और गर्म नाश्ते से करती| इतनी छोटी आयु मे ही उसने तरह तरह के व्यंजन बनाने सीख लिए थे|
उसके हाथ की बनी पकौड़ियाँ, कढ़ी, पुलाव और दम आलू खाकर लोग उँगलियाँ चाटते रह जाते थे| इतना सब कुछ करने पर भी उसे चाची और उनके बच्चे राजू और कंचन से कभी प्यार के दो मीठे शब्द नहीं मिलते थे| नुक्स निकालने के सिवा उन्हें और कुछ नहीं आता था|
एक ही काम को बार बार करवाने मे राजू और कंचन को बड़ा मज़ा आता था| दुख तकलीफ में वह सिर्फ ईश्वर को याद करती थी| सुबह उठ कर नहा-धोकर भगवान् को भोग लगाकर ही कुछ करती थी| शाम को दोबारा आरती करती और काम करते वक़्त भजन गाती रहती| बचपन से ही उसकी माँ ने उसे ईश्वर पर विश्वास रखने की शिक्षा दी थी|
वह कहतीं, “बेटी, कभी किसी मुसीबत में पड़ो और किसी सवाल का हल ना मिलें तो रामजी से पूछ लो| वह तुम्हे ज़रूर राह दिखायेंगे| उनके पास तो हर सवाल का हल होता है और जो उनकी मदद लेता है उसे किसी की चिंता नहीं होती|”
बचपन की यह बातें माधवी के मस्तिक्ष मे ऐसी समायी थीं की अब वह उसकी आदत बन गयी थी| माँ बाप के चले जाने के बाद, ईश्वर में उसका विश्वास घटने के बदले और बढ़ गया था| वह सोचती थी की जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है| ईश्वर इच्छा के बिना पेड़ का एक पत्ता नहीं डोलता तो फिर क्यूँ ना मै बेकार की बातें छोड़ भगवान् भक्ति मे अपना समय बिताऊं!
काफी समय बीत गया| राजू अब कॉलेज में पढता था| रोज़ पास के शहर जाता और शाम को वापस आता| कंचन की शादी की तैयारीयाँ हो रही थीं| इन्ही जाड़ों में पास के माधोपुर गाँव से बारात आने वाली थी| जमाई राजा का खुद का कारोबार था|
कपड़े की दुकाने तीन थीं और एक छोटी फैक्ट्री में खिलौने भी बन कर शहर में बिकने जाती थीं| माधवी कंचन से दो बर्ष बड़ी थी पर उसकी शादी की किसी को परवाह नहीं थी| चाचा ने एक दो बार चाची से इस विषय पर बात छेड़ी थी पर बात आगे नहीं बढ़ी| सीधी सी बात थी माधवी ससुराल चली गयी तो घर का काम चाची को करना पड़ता|
भला यह कैसे हो सकता था| उन्हें तो आराम से बैठने की आदत पढ़ गयी थी| वह माधवी को हमेशा सुनाती, “अरे बिटिया तेरी शादी होना नामुमकिन है| रंग तो तेरा काला है, कौन काली कलूटी से फेरे करवाएगा| तू तो यहीं जमी रह| बुढ़ापे मे चाचा चाची की सेवा करेगी तो बड़ा पुण्य मिलेगा| समझी ना?”
माधवी उनकी बातों का ज़रा भी बुरा नहीं मानती थी| चाचा की लाचारी समझकर वह उनकी देख भाल करती हुई ही अपना जीवन व्यतीत करना चाहती थी|
आखिर कंचन के ब्याह का दिन आ ही गया| माधवी ने घर की सजावट मे कोई कसर ना छोड़ी| खाने पीने का बढ़िया प्रबंध कर वह कंचन को सजाने में लगी हुई थी| कुछ ही समय के बाद बारात आ गयी| सब लोग स्वागत में आगे बढे पर माधवी खाने का पूरा इंतज़ाम देखने पीछे चली गयी|
अभी उसने पत्तल वगेहरा लगवाने शुरू ही किये थे की कंचन की सहेली रानी ने दौड़कर कहा, “माधवी चल, दुल्हे राजा तुझसे मिलना चाहते हैं!”
माधवी ने सारी का पल्लू ठीक किया और रानी के साथ शामियाने में आयी| दूल्हा कुर्सी पर बैठ शरबत पी रहा था| ज्यों ही उन्होंने माधवी को देखा हैरानी से उनकी अजीब हालत हो गयी| उन्होंने झट पीछे खडे दोस्तों में से अपने प्रिय मित्र राजन को हाथ पकड़ कर अपने पास बुलाते हुए कहा, “राजन देख भाभी!”
आसपास खड़े लोग दुल्हे की बात सुनकर हैरान हो गए| राजन की आँखें एकटक माधवी के चेहरे पर गड़ी थीं|माधवी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था| घबड़ाकर वह उलटे पांव घर के अन्दर चली गयी|
राजन ने कुर्सी का सहारा लिया और सर से पसीना पोछने लगा| प्रदीप, कंचन के होने वाले पति ने सब को बताया की दो साल पहले राजन की शादी हुई थी और पिछली गर्मियों में उसकी पत्नी रेणु का स्वर्गवास हुआ था| माधवी का चेहरा हू बहू रेणु भाभी जैसा था|
सिर्फ चेहरा ही नही, बल्कि रंग, कद और आवाज़ भी वही थी| राजन को ऐसा लगा मानो रेणु उसे दोबारा मिल गयी हो| उसे बार-बार माधवी की सुन्दर आँखें याद आ रही थीं जो बिलकुल रेणु की तरह सुन्दर थीं, सिर्फ एक फरक था| रेणु के बाल सीधे लम्बे थे और माधवी के कंधे तक घुंगराले थे|
अब तक माधवी के चाचा भी वहां आ गए थे| प्रदीप ने उनसे कहा, “पिताजी, आप अपनी बेटी माधवी की शादी यदि मेरे मित्र राजन से करवादें तो उसे दोबारा उसकी पत्नी मिल जाएगी जिसके बिना उसकी ज़िन्दगी बेकार ही हो गई है|”
चाचा ने हामी भरी और चाची के लाख मना करने पर भी एक ही मंडप में कंचन और माधवी दोनों की शादी करवा दी|
शादी के तीन साल बीत गए| कंचन को एक बेटा और माधवी को एक बेटी हो चुके थे| माधवी ने कभी सोचा नही था की पति का प्यार और बेटी का सुख उसे इतनी ज़्यादा मिलेगी की वह अपने बीते दिनों के दुःख तकलीफ को बिलकुल भूल जाएगी|
राजन के माँ-बाप और भाई बहिन माधवी को इतना चाहते थे की कहा नही जा सकता|
माधवी को आखिर भगवान् पर विश्वास रखने का फल मिल ही गया|
डिस्क्लेमर: यह एक काल्पनिक कहानी है|
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